Pipal Chhav
Munawwar Rana
मुनव्वर ने अपने आपको सरमायादारी की उन लानतों से महफूज़ रक्खा है जिसकी वजह से लेनिन ने ख़ुदा के हुजूर में यह ख़्वाहिश की थी कि इसका सफ़ीना डूब जाये। मुनव्वर ने अपनी निजी ज़िन्दगी और ज़ेहन को इससे अलग रक्खा और इसे अपने ऊपर मुसल्लत नहीं होने दिया, बल्कि इसके बेहतर हुसूल के बावजूद इस सैलाब को अपने काबू में रखा, जो आता है तो सीरत और शख़्सियत, सबको अपने साथ बहा ले जाता है! मुनव्वर राना को इस दौर में महल न सही, बहुत आरामदेह ज़िन्दगी के सारे मौके मिले हैं, लेकिन इसके बावजूद अपनी ग़ज़लों में दरमियानी दर्जे की ज़िन्दगी के मसायल को पेश करना, उन्हें अपना पसन्दीदा मौजूं बनाना सिर्फ़ इस बात का सुबूत नहीं है कि मुनव्वर तरक्क़ीपसन्द शायर हैं, बल्कि यह तर्ज़े-फ़िक्र इस बात की दलील है कि मुशायरों में अपनी आँखों को ऊपर उठाये रखने वाला यह भी जानता है कि अपनी राहत के साथ-साथ ज़मीन पर बसने वाली तमाम मख़लूक़ की मुश्किलात को भी समझते रहना ज़रूरी है। इसी अन्दाज़े-नज़र ने उन्हें एक दर्दमन्द और ग़मख़्वार शायर बनाया है। -डॉ. मसूदुल हसन उस्मानी
Rok:
1905
Wydawnictwo:
Vani Prakashan
Język:
hindi
Strony:
92
ISBN 10:
8181439813
ISBN 13:
9788181439819
Plik:
PDF, 142 KB
IPFS:
,
hindi, 1905